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"मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग जैसा कि आप सभी ने

"मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग
जैसा कि आप सभी ने देखा पिछले भाग मे मेरी खूब हँसी हुई उससे मुझे बहुत दु:ख पहुँचा पर इससे ज्यादा दु:ख मुझे तब पहुँचा जब शीतल ने मेरी इतनी अच्छी दोस्त होकर भी मुझे इस बात से अंजान रखा मैं फिर से बिल्कुल शान्त और गुमसुम सा रहने लगा और शीतल से कटा कटा सा रहता पर उधर वो शीतल थी यह मैं भी जानता था कि वह हार मानने वालों मे से नहीं थी इधर मैने भी ठान रखा था कि मैं अब बात नहीं करूँगा शीतल से कई दिन बीत गए धीरे-धीरे शीतल ने भी मुझसे बात करना कम कर दिया और ठीक भी था मैं जैसा चाह रहा था वैसा ही हो रहा था
                    धीरे-धीरे मेरा गुस्सा शान्त हो रहा था पर इस बीच शीतल में भी बदलाव आने लगा था वह इतना शान्त कभी नहीं थी जितना कि कुछ दिनों से रहने लगी थी वह उसने मजाक करना लगभग छोड़ दिया था उसके मजाक अब धीरे -धीरे सीमित होते जा रहे थे यूँ समझो वह बहुत कुछ मन के तराजू में तोलने लगी थी और जो किसी को जरा सा भी ठेस पहुँचाए ऐसे मजाक करना तो वह बन्द कर चुकी थी इधर मैं उसे ऐसे उदास कभी नहीं देखता था पर देखना पड़ रहा था
                     एक दिन यूँ ही मन में उसका ख्याल फिर आने लगा मैं उसको यूँ गुमसुम नहीं देख सकता था और गलती मेरी ही थी मैं उसको समझ नहीं सका अब मुझे पछतावा हो रहा था उसका स्वभाव ऐसा कभी नहीं था 
                     अगले दिन जब मैं स्कूल पहुँचा तो मन में ये सोंच कर गया था कि उससे आज बात करूँगा और उस दिन के लिए माफी माँगूगा मैने अपनी साइकिल खडी़ की और क्लास में जाकर बैठ गया और उसके आने का इन्तजार करने लगा
                       उधर शीतल से भी रहा न जा रहा था मेरा उससे बात न करना उसे इग्नोर करना उसका पारा बढा़ रहा था उसने मेरे दोस्तों का सहारा लिया और मेरी साइकिल के टायर में परकार की सहायता से इतने चित्र बनवा डाले कि अब वह न बनवाने लायक थी और न चलाने लायक और यह काण्ड करके वह चुपचाप बैठ गई
                        आज मैने कई बार उससे बात करने की कोशिश की पर उत्तर हाॅ या ना में मिल रहे थे वह मुझे नजरंदाज करने की कोशिश कर रही थी इस तरह से मेरी सारी कोशिशें बेकार गईं शाम को छुट्टी हुई तो मैं अपनी साइकिल के पास गया तो देखा पिछला टायर पंक्चर था मेरे दिमाग में आइडिया आया कि चलकर इसे बाहर पंक्चर की दुकान से बनवा लेता हूँ फिर क्या मैं अपनी साइकिल को घसीटता हुआ बाहर पंक्चर की दुकान पर पहुँचता हूँ वहाँ शीतल अपनी साइकिल लिए मेरा इंतजार कर रही थी फिर
                                 *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग
"मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग
जैसा कि आप सभी ने देखा पिछले भाग मे मेरी खूब हँसी हुई उससे मुझे बहुत दु:ख पहुँचा पर इससे ज्यादा दु:ख मुझे तब पहुँचा जब शीतल ने मेरी इतनी अच्छी दोस्त होकर भी मुझे इस बात से अंजान रखा मैं फिर से बिल्कुल शान्त और गुमसुम सा रहने लगा और शीतल से कटा कटा सा रहता पर उधर वो शीतल थी यह मैं भी जानता था कि वह हार मानने वालों मे से नहीं थी इधर मैने भी ठान रखा था कि मैं अब बात नहीं करूँगा शीतल से कई दिन बीत गए धीरे-धीरे शीतल ने भी मुझसे बात करना कम कर दिया और ठीक भी था मैं जैसा चाह रहा था वैसा ही हो रहा था
                    धीरे-धीरे मेरा गुस्सा शान्त हो रहा था पर इस बीच शीतल में भी बदलाव आने लगा था वह इतना शान्त कभी नहीं थी जितना कि कुछ दिनों से रहने लगी थी वह उसने मजाक करना लगभग छोड़ दिया था उसके मजाक अब धीरे -धीरे सीमित होते जा रहे थे यूँ समझो वह बहुत कुछ मन के तराजू में तोलने लगी थी और जो किसी को जरा सा भी ठेस पहुँचाए ऐसे मजाक करना तो वह बन्द कर चुकी थी इधर मैं उसे ऐसे उदास कभी नहीं देखता था पर देखना पड़ रहा था
                     एक दिन यूँ ही मन में उसका ख्याल फिर आने लगा मैं उसको यूँ गुमसुम नहीं देख सकता था और गलती मेरी ही थी मैं उसको समझ नहीं सका अब मुझे पछतावा हो रहा था उसका स्वभाव ऐसा कभी नहीं था 
                     अगले दिन जब मैं स्कूल पहुँचा तो मन में ये सोंच कर गया था कि उससे आज बात करूँगा और उस दिन के लिए माफी माँगूगा मैने अपनी साइकिल खडी़ की और क्लास में जाकर बैठ गया और उसके आने का इन्तजार करने लगा
                       उधर शीतल से भी रहा न जा रहा था मेरा उससे बात न करना उसे इग्नोर करना उसका पारा बढा़ रहा था उसने मेरे दोस्तों का सहारा लिया और मेरी साइकिल के टायर में परकार की सहायता से इतने चित्र बनवा डाले कि अब वह न बनवाने लायक थी और न चलाने लायक और यह काण्ड करके वह चुपचाप बैठ गई
                        आज मैने कई बार उससे बात करने की कोशिश की पर उत्तर हाॅ या ना में मिल रहे थे वह मुझे नजरंदाज करने की कोशिश कर रही थी इस तरह से मेरी सारी कोशिशें बेकार गईं शाम को छुट्टी हुई तो मैं अपनी साइकिल के पास गया तो देखा पिछला टायर पंक्चर था मेरे दिमाग में आइडिया आया कि चलकर इसे बाहर पंक्चर की दुकान से बनवा लेता हूँ फिर क्या मैं अपनी साइकिल को घसीटता हुआ बाहर पंक्चर की दुकान पर पहुँचता हूँ वहाँ शीतल अपनी साइकिल लिए मेरा इंतजार कर रही थी फिर
                                 *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग

"मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग