कौन है विकलांग ये मेरा सवाल है, क्यों मानसिक रोग पर होता इतना बवाल है, वो अलग है,उनकी अलग पहचान है, कौन कहता है कि वो विकलांग है, शरीर से भिन्न होना नहीं इसका सूचक, संकुचित सोच है इसकी परिभाषा, इसका परिसूचक, संकुचित सोच की काश!कोई दवाई बनाई जाए, संकीर्ण मानसिकता को फिर थोड़ी थोड़ी पिलाई जाए, जो अनभिज्ञ है,मानसिक मनोविकार वाले व्यक्ति के स्वभाव से, उनकी मनःस्थिति और अपने ज्ञान के आभाव से, अनुवांशिक रोगों में होता है कम विकास, लड़ते हैं अडिग फिर भी चलती है इनकी साँस, परिवार भी इनका योद्धा होता है, हर स्थिति में जो इनका साथ देता है, मानसिक आपकी विकलांगता,इन्हें विकलांग बनाती है, समझो अपने सा इन्हे,ये बात ढाँढस बंधाती है, 'विकलांगता की क्षमता' को काश कोई नया नाम दे, कोई विकलांग समाज की इस सोच को फिर नया आयाम दे!!! -नीलम भोला ©Neelam bhola विकलांग