तेरे ज़हन के समंदर में उतरने दे न मुझको ये पहेली सी आँखें ज़रा पढ़ लेने दे न मुझको आ बैठ कभी फ़ुर्सत से कुछ गुफ्तगु हम कर ले जी भर कर आज तुझे सुन लेने देना मुझको... क्या हो कि भूल जाए हम दो घड़ी के लिए हर शय खोल कर रख दे दिल की किताब एक बार लफ्ज़ लफ्ज़ समझ लेने देना मुझको अपना नाम आज ढूढ़ लेने देना मुझको... तेरे ज़हन के समंदर में उतरने दे न मुझको ©तृप्ति #जहन