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--------- मलकिनिया के पापड़------- -------------भा

--------- मलकिनिया के पापड़-------
-------------भाग-2---------------
---------बघेली रचना क्रमांक-3------
आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।
हर बातिनि में दिनभर उ, चलति हां आपन चाल।।
आगे का सुनि लेई हाल, भगन दूर वहां से तत्काल।
सोचन पहिले जान बचाई, नही त मचि जई तुरत बवाल।।
पै जब उ सामान दिखिन, तब आबा हमरउ खयाल।
नाश्ता पानी सब लइ आईं, फेर मत पूछी हाल।।
बड़े प्रेम से उ बोलिन, पूछिन एक ठे सवाल ।
पहिले पापड़ कि चिप्स बनाई, चलिन उ फेर से चाल।।
हमहूं त कम नही रहन, समझि गयन तत्काल।
सोचन पुनि कुछ बाति बनाई, नही त मची बवाल।। 
कहन दुनउ क साथे बनाबा, काहे रखबा झंझट पाल।
सुखई न त होई बेकार, मौसम बदलत है तत्काल।।
हम काटीथे चिप्स लिआबा,पापड़ बनाबा जीरा डाल।
दुनहू जने करीथे काम, काहे रखबा झंझट पाल।।
फेर दुनहू जन चिप्स बनायन, पापड़ जीरा डाल। 
रंग डारि रंग-रोगन किन्हन, पीला हरा औ लाल।।
"राज" कहिन की राज न राखा, न राखा कउनौ मलाल।
इ पावन रिश्ता है आपन, एका रखा संभाल।।
नोक-झोक औ राग विराग, सदा हबै इह काल।
हमरन क इ जोड़ी राखा, ऐसई गौरा औ महाकाल।।
इ कविता है हसै के खातिर, समझी न कउनौ जाल।
बस मलकिन के प्यार छुपा है, समझी न कउनौ चाल।।
अपनऊ पंचे रखी बनाइके,  आपन प्रेम सम्भाल।
जउने एक दूसरे के दिल म, रहइ न कउनौ सवाल।।
आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।।
आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।
-------कुशवाहाजी

©राजेश कुशवाहा --------- मलकिनिया के पापड़-------
-------------भाग-2---------------
---------बघेली रचना क्रमांक-3------
आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।
हर बातिनि में दिनभर उ, चलति हां आपन चाल।।
आगे का सुनि लेई हाल, भगन दूर वहां से तत्काल।
सोचन पहिले जान बचाई, नही त मचि जई तुरत बवाल।।
पै जब उ सामान दिखिन, तब आबा हमरउ खयाल।
--------- मलकिनिया के पापड़-------
-------------भाग-2---------------
---------बघेली रचना क्रमांक-3------
आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।
हर बातिनि में दिनभर उ, चलति हां आपन चाल।।
आगे का सुनि लेई हाल, भगन दूर वहां से तत्काल।
सोचन पहिले जान बचाई, नही त मचि जई तुरत बवाल।।
पै जब उ सामान दिखिन, तब आबा हमरउ खयाल।
नाश्ता पानी सब लइ आईं, फेर मत पूछी हाल।।
बड़े प्रेम से उ बोलिन, पूछिन एक ठे सवाल ।
पहिले पापड़ कि चिप्स बनाई, चलिन उ फेर से चाल।।
हमहूं त कम नही रहन, समझि गयन तत्काल।
सोचन पुनि कुछ बाति बनाई, नही त मची बवाल।। 
कहन दुनउ क साथे बनाबा, काहे रखबा झंझट पाल।
सुखई न त होई बेकार, मौसम बदलत है तत्काल।।
हम काटीथे चिप्स लिआबा,पापड़ बनाबा जीरा डाल।
दुनहू जने करीथे काम, काहे रखबा झंझट पाल।।
फेर दुनहू जन चिप्स बनायन, पापड़ जीरा डाल। 
रंग डारि रंग-रोगन किन्हन, पीला हरा औ लाल।।
"राज" कहिन की राज न राखा, न राखा कउनौ मलाल।
इ पावन रिश्ता है आपन, एका रखा संभाल।।
नोक-झोक औ राग विराग, सदा हबै इह काल।
हमरन क इ जोड़ी राखा, ऐसई गौरा औ महाकाल।।
इ कविता है हसै के खातिर, समझी न कउनौ जाल।
बस मलकिन के प्यार छुपा है, समझी न कउनौ चाल।।
अपनऊ पंचे रखी बनाइके,  आपन प्रेम सम्भाल।
जउने एक दूसरे के दिल म, रहइ न कउनौ सवाल।।
आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।।
आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।
-------कुशवाहाजी

©राजेश कुशवाहा --------- मलकिनिया के पापड़-------
-------------भाग-2---------------
---------बघेली रचना क्रमांक-3------
आजु बताइथे हमहूं अपने, मलकिनिया के हाल।
हर बातिनि में दिनभर उ, चलति हां आपन चाल।।
आगे का सुनि लेई हाल, भगन दूर वहां से तत्काल।
सोचन पहिले जान बचाई, नही त मचि जई तुरत बवाल।।
पै जब उ सामान दिखिन, तब आबा हमरउ खयाल।