अचंभित क्यूँ हो दानवता पर यह उसी पुरुषत्व का बिगड़ा रूप है जो जो जन्मांतरों से श्रेष्ठ सिद्ध किया जाता रहा यह वही पुरुषत्व है जिसे शक्तिशाली होने का प्रमाण प्राप्त है इतना चकित क्यूँ हो आज इस पुरुषत्व में नारी अनादिकाल से भोगती आयी है माँ,बहन, रिश्ता चाहे कोई भी हो हर गाली के केंद्र में होती सदैव स्त्री है मानवता आज कोई नई कहाँ मरी है निर्भया, फिर श्रद्दा और पता नहीं कितनी ही मरी मानवता पर हम एक बार फिर शर्मिंदा है बहन शत्रुता का दंश पता नहीं क्यूँ सदा भोगती स्त्री है ठहरो अब मत बनाओ औरत क़ो देवी बस रहने दो उसे सिर्फ औरत ऐसी औरत जो हौसला रखे अपने शत्रु के मानमर्दन का ऐसी औरत जो सलामत रख सके अपनी गरिमा अपने अहं क़ो आसमान दुखी है और धरती भयभीत और प्रकृति भयातुर काश! मानवो और दानवो की कोई पहचान होती तेरी दुनियाँ में रहना भी कितना दुष्कर है ईश्वर #मणिपुरहिंसा Pratibha Singh ©Pratibha Singh