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पल्लव की डायरी जिंदगी का सफर अनजाना था मुक्कदर उस


पल्लव की डायरी
जिंदगी का सफर अनजाना था
मुक्कदर उसे अपना बना बैठे
सन उन्नीस सौ छियानवे में चुना
दो हजार चौबीस पर आ बैठे
कुछ खुशी कुछ गम जरूर मिले
मगर जीवन सफर अठ्ठाइस वर्ष का
अब तक गुजार बैठे है
विचार और स्वभाव अभी भी उलझे है
मगर जिम्मेदारी बखूबी दोनों निभाते आये है
                                         प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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