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याद आते हैं वह पल 2। इम्तिहान याद आता हे वह गलि

याद आते हैं वह पल 2। 


इम्तिहान याद आता हे वह गलियां , चौबारे
जहाँ बने थे दोस्ती हजारे
वह सुबह शुरू होता था पानी भरे चाय की कप से
खतम होते थे रात की बाकी रहा नींद में। 
कितने मदमस्त थे वो रंग फाटक के,
रेलों का आना जाना, दोस्तो के साथ दो पल बाँटना।
अब तो अकेलापन ही एक दोस्त बचा हुआ हे,
न कोई गाली देने को हे न कोई रूठने पे
याद आते हैं वह पल 2। 


इम्तिहान याद आता हे वह गलियां , चौबारे
जहाँ बने थे दोस्ती हजारे
वह सुबह शुरू होता था पानी भरे चाय की कप से
खतम होते थे रात की बाकी रहा नींद में। 
कितने मदमस्त थे वो रंग फाटक के,
रेलों का आना जाना, दोस्तो के साथ दो पल बाँटना।
अब तो अकेलापन ही एक दोस्त बचा हुआ हे,
न कोई गाली देने को हे न कोई रूठने पे