ढाई अक्षर प्रेम के, *एक सच* ******** सदियों से चली आ रही कहानियों की तरह ही ये भी एक सीधी सादी प्रेम -कथा थी दो साधारण से किरदारों वाली… , वक्त के साथ बदल गई थी एक डरावनी सी कहानी में….! प्रेम नाम के एक अहम पात्र ने आत्महत्या कर ली ... वहीं घिसी पिटी रूढ़ियों के बेनाम से एक शहर के उस भावहीन , विचित्र और सूखे से सागर में डूबकर.....! सुना है उसकी भटकती आत्मा उदासी का दुपट्टा पहने एक उम्रदराज युवती को आजतक सताती है… और वो सूखा सागर अब लबालब ऊपर तक भर गया है उसकी द्रवित आंखो के नमकीन पानी से ……..! परी-कथाओं और चलचित्रो से हटकर असली की प्रेमकथाएं ऐसे ही अन्तिम और अभाषित रह जाती है ….. और बन जाती है उपन्यासों और फिल्मों के नायक ,नायिकाओं की अधूरी प्रेम-कहानियां……! आज का प्रेम यू हि दम तोड़ देता है ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) *एक सच* ******** सदियों से चली आ रही कहानियों की तरह ही ये भी एक सीधी सादी प्रेम -कथा थी दो साधारण से किरदारों वाली… , वक्त के साथ बदल गई थी