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देखता रहता हूँ हमेसा तेरा रस्ता पर जब कोई राही न

देखता रहता हूँ  हमेसा  तेरा रस्ता
पर जब कोई राही नी दिखता ।।
तो इन्तजार करना गवारा नहीं होता 
पर फीर भी मेरा ये मन 
मुझे चुप ही करा देता हैं ।।
सिर्फ़ ये कैह कर 
की जो मुसाफ़िर होते हैं  
वो अपनी मंजिल का रस्ता हमेसा
देखते रहते  हैं ।। 🤗
देखता रहता हूँ  हमेसा  तेरा रस्ता
पर जब कोई राही नी दिखता ।।
तो इन्तजार करना गवारा नहीं होता 
पर फीर भी मेरा ये मन 
मुझे चुप ही करा देता हैं ।।
सिर्फ़ ये कैह कर 
की जो मुसाफ़िर होते हैं  
वो अपनी मंजिल का रस्ता हमेसा
देखते रहते  हैं ।। 🤗