जिंदगी है उलझी मेरी, और अपने हैं खफा ! सोच के खुद को अकेले, क्यों अकेले हैं सदा !! दिन वो ठोकर मार देती, है वो काली रात में ! भीग के ठिठुरे पड़े थे, घोर -घनी बरसात में !! आदमी भी आदमी से, है वो नफरत क्यों भला ! सोच के खुद को अकेले, क्यों अकेले हैं सदा !! :- संतोष 'साग़र' बेनाम शायर Pratibha Tiwari(smile)🙂