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जिस मां ने, नौ माह अपने गर्भ में रखा, जन्म दिया और

जिस मां ने, नौ माह अपने गर्भ में रखा, जन्म दिया और पाला।
जिस पिता ने, उंगली पकड़कर चलना सिखाया और संभाला।

बच्चे जब समझदार हो गए, मां-बाप उनके लिए बेकार हो गए।
जिन्होंने जिंदगी जीना सिखाया, अब उनके लिए बोझ हो गए।

आधुनिकता के रंग में रंगकर, बच्चे अपने सब संस्कार भूल गए।
पश्चिमी सभ्यता को अपनाकर, अपना सब घर परिवार भूल गए।

दया ना आती बूढ़े-लाचार मां-बाप पर, उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ जाते।
दूध का कर्ज कैसे चुकाएंगे, जो अपने फर्ज भी नहीं निभा पाते।

भूल जाते हैं "जैसी करनी वैसी भरनी"इस संसार का अटूट नियम है।
उनके बच्चे भी जैसा देखेंगें, वैसा ही व्यवहार उनके साथ भी करेंगें।

-"Ek Soch"
 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫प्रतिस्पर्धा में भाग लें  "मेरी रचना✍️ मेरे विचार"🙇 के साथ..

🥇"मेरी रचना मेरे विचार" आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  का  प्रतियोगिता:-०६ में हार्दिक स्वागत करता है..💐🙏🙏💐

🥈आप सभी ८ से १० पंक्तियों में अपनी रचना लिखें।  विजेता का चयन हमारे चयनकर्ताओं द्वारा नियम एवं शर्तों के अनुसार  किया जाएगा।
जिस मां ने, नौ माह अपने गर्भ में रखा, जन्म दिया और पाला।
जिस पिता ने, उंगली पकड़कर चलना सिखाया और संभाला।

बच्चे जब समझदार हो गए, मां-बाप उनके लिए बेकार हो गए।
जिन्होंने जिंदगी जीना सिखाया, अब उनके लिए बोझ हो गए।

आधुनिकता के रंग में रंगकर, बच्चे अपने सब संस्कार भूल गए।
पश्चिमी सभ्यता को अपनाकर, अपना सब घर परिवार भूल गए।

दया ना आती बूढ़े-लाचार मां-बाप पर, उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ जाते।
दूध का कर्ज कैसे चुकाएंगे, जो अपने फर्ज भी नहीं निभा पाते।

भूल जाते हैं "जैसी करनी वैसी भरनी"इस संसार का अटूट नियम है।
उनके बच्चे भी जैसा देखेंगें, वैसा ही व्यवहार उनके साथ भी करेंगें।

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