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नहीं मुझको जो ज़माने में, नहीं कभी किसी ने समझा!! श

नहीं मुझको जो ज़माने में,
नहीं कभी किसी ने समझा!!
शिकवा भी नहीं कभी किसी से,
क्या अपनों से, भी गिला!!

केे आदत मेरी ये ख़ामोशी की,
नहीं दिखाने को रही कभी!!
है खामोश ...    दिल ये मेरा,
सुन कभी दिल की मेरे, तू सदा!!

कहना था बस कह दिया ...
~~~ निशान्‍त ~~~ समझा
नहीं मुझको जो ज़माने में,
नहीं कभी किसी ने समझा!!
शिकवा भी नहीं कभी किसी से,
क्या अपनों से, भी गिला!!

केे आदत मेरी ये ख़ामोशी की,
नहीं दिखाने को रही कभी!!
है खामोश ...    दिल ये मेरा,
सुन कभी दिल की मेरे, तू सदा!!

कहना था बस कह दिया ...
~~~ निशान्‍त ~~~ समझा

समझा