सुना है इस बार तो फिज़ा में भी ज़हर है..! अफसोस ये की अब के हवा भी मुख्तसर है..!! साहब की एक लहर थी, और एक ये लहर है...! वो कितनी बेअसर थी ये कितनी बाअसर है..!! उनको कमी नहीं है जो उनको मोतबर हैं..! बाकी की सांसे अटकी और सांस की कसर है..!! दिखता नहीं क्यू आखिर जो हाल है हशर है..! सोए हुए हैं फिर क्यूं, क्यूं इतने बेखबर हैं..!! छोटी सी एक वबा से सब ज़ेर है ज़बर है..! ख़ालिक से मांगते हैं मालिक पे ही नज़र है..!! ©Abd Khan #Tanashahi #Nodiscrimination