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जब-जब मेघा बरसे थे,ये नैना तुम बिन तरसे थे, मस्त,म

जब-जब मेघा बरसे थे,ये नैना तुम बिन तरसे थे,
मस्त,मधुर मन के सावन,रिमझिम बारिश में तडपे थे।

यादों के वो कटुर तीर,मन को छलनी कर जाते थे,
जब-जब बादल संग मस्त हवा,बालों को छू कर जाते थे।

हाथों में वो हाथ तुम्हारा,कदम-कदम संग साथ तुम्हारा,
नैनों से बातें होती और हर दम मिलता प्यार तुम्हारा।

जब-जब बादल गरजे थे, तुम बिन हम कितना तरसे थे,
बूंद- बूंद नभ से गिरकर, मेरे मन पर जमकर बरसे थे।

©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
  #मेघा