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लफ्ज़ कुछ पिछले पन्नों से... जो अक्सरहां टकरा जाते

लफ्ज़ कुछ पिछले पन्नों से...
जो अक्सरहां टकरा जाते हैं
दिन, महीने, साल में....
बीते कल में...
या शायद...आज....
हाँ, आज के दिन....

किश्तों का हिसाब !!

किश्त-दर-किश्त 
गुजरता वक्त यह
ढल नहीं जाता एकबारगी क्यों?
कि 
किश्तों में ही क्यों 
बनती-सँवरती
और बिगड़ती 
जिन्दगी!
क्या,किश्तों के दायरे से 
बाहर नहीं है आदमी...?

'किश्तों का हिसाब'
है, जमाने का रिवाज!
@manas_pratyay #किश्तों_का_हिसाब © Ratan Kumar
लफ्ज़ कुछ पिछले पन्नों से...
जो अक्सरहां टकरा जाते हैं
दिन, महीने, साल में....
बीते कल में...
या शायद...आज....
हाँ, आज के दिन....

किश्तों का हिसाब !!

किश्त-दर-किश्त 
गुजरता वक्त यह
ढल नहीं जाता एकबारगी क्यों?
कि 
किश्तों में ही क्यों 
बनती-सँवरती
और बिगड़ती 
जिन्दगी!
क्या,किश्तों के दायरे से 
बाहर नहीं है आदमी...?

'किश्तों का हिसाब'
है, जमाने का रिवाज!
@manas_pratyay #किश्तों_का_हिसाब © Ratan Kumar