पिता! ज़िन्दगी बड़ी है गिले-शिकवे नाकुछ हैं, नाचीज़ हैं मेरी दिलचस्पी नहीं बन्दगी में भी शिकवों से भी शिकायत है तलाश है आसां डगर की कुछ भी तो नहीं गर रौशनी सँवलाई हो और अँधेरे में भी उजाला हो चाँदनी फीकी हो और ज़्यादा ज़ोर जुगनुओं का हो आख़िर ज़िन्दगी कई राज़ों का झुरमुट है # पिता! ज़िन्दगी की सारी लहरों को पी पाने की दुआ दे दो