हसीं रात का ख़्वाब था जो सुब्ह नदारद गैर हाज़िर था दिल मा'सूमियत पर मरा और वो शख़्स बेहद शातिर था! इस क़दर लुटा दिल वही लुटेरा बन बैठा जो आजिर था। आँगन की रौनक था आज अपने ही घर में मुहाजिर था! जिसे हमसफ़र समझा था एक रात का मुसाफ़िर था मोमिन समझा था अपना वो दग़ाबाज़ था काफ़िर था! अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत, हाँ, होश ठिकाने आने से तक वही हाजिर-नाजिर था। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1082 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।