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हर ओझल दिन जब ढलता हो और उफ़क से सागर मिलता हो सब अ

हर ओझल दिन जब ढलता हो
और उफ़क से सागर मिलता हो
सब अंदर अंदर मर जाए
सब अंबर बादल ढक जाए
जब चाँद की लौटा फेरी हो
जब तारों में कुछ देरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो...। 
मेरा हर धाम पराया हो जाए
छिपा हर दर्द नुमाया हो जाए
और बहुत पास में आकर भी
हर कोशिश ज़ाया हो जाए
जब तेज़ भरी ये दोपहरी हो
जब कहीं ना छाँव घनेरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो...।

अब भूल चुका लिखना पढ़ना
ये शब्द पिरोना भूल चुका
कभी कुज़ागर के चाक सा था
अब मिट्टी गड़ना भूल चुका
फ़िर भी इन प्राणो के पन्नों पर
खिची तुम एक उकेरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो...।
इन सूखी हाथ लकीरों मे
मै क्या कुछ भी लिखूँ पढ़ूं
मै तो एक आस का मारा हूँ
और आस बहुत है बाज़ारू
जब जीवन के घोर अभावों में
बस तुम उम्मीद की ढेरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो।

©Jayant Sharma हर ओझल दिन जब ढलता हो
और उफ़क से सागर मिलता हो
सब अंदर अंदर मर जाए
सब अंबर बादल ढक जाए
जब चाँद की लौटा फेरी हो
जब तारों में कुछ देरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो...। 
मेरा हर धाम पराया हो जाए
हर ओझल दिन जब ढलता हो
और उफ़क से सागर मिलता हो
सब अंदर अंदर मर जाए
सब अंबर बादल ढक जाए
जब चाँद की लौटा फेरी हो
जब तारों में कुछ देरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो...। 
मेरा हर धाम पराया हो जाए
छिपा हर दर्द नुमाया हो जाए
और बहुत पास में आकर भी
हर कोशिश ज़ाया हो जाए
जब तेज़ भरी ये दोपहरी हो
जब कहीं ना छाँव घनेरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो...।

अब भूल चुका लिखना पढ़ना
ये शब्द पिरोना भूल चुका
कभी कुज़ागर के चाक सा था
अब मिट्टी गड़ना भूल चुका
फ़िर भी इन प्राणो के पन्नों पर
खिची तुम एक उकेरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो...।
इन सूखी हाथ लकीरों मे
मै क्या कुछ भी लिखूँ पढ़ूं
मै तो एक आस का मारा हूँ
और आस बहुत है बाज़ारू
जब जीवन के घोर अभावों में
बस तुम उम्मीद की ढेरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो।

©Jayant Sharma हर ओझल दिन जब ढलता हो
और उफ़क से सागर मिलता हो
सब अंदर अंदर मर जाए
सब अंबर बादल ढक जाए
जब चाँद की लौटा फेरी हो
जब तारों में कुछ देरी हो
एक बार कहो तुम मेरी हो...। 
मेरा हर धाम पराया हो जाए