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तीर्थ करके आ रहे हैं, वेद महिमा गा रहे हैं मत्रों

तीर्थ करके आ रहे हैं, वेद महिमा गा रहे हैं
मत्रों का उच्चार साधे, कौन जाने पूरे या आधे
ज्ञान का मस्तक अमर है, मुक्त होना भी मगर है
तो कहो हम हैं दशानन, युद्ध अपना लड़ रहे हैं 
राम है अंतस में अपने, ज्ञान शुद्धि कर रहे हैं

पाप का संताप देखा, आमोद पश्चाताप देखा
देह का धर कर शिवालय, शून्य अपना आप देखा
मिट रहा प्रतिपल यहां सब, व्यर्थ तांडव कर रहे हैं
शीश में लेकर धतूरा, भस्म मल-मल कर रहे हैं
राम है अंतस में अपने, ज्ञान शुद्धि कर रहे हैं

क्या धर्म का अभिप्राय जाना, कि मान्यताओं को ही माना
पंथ का परिधान ओढ़े, नीर गंगा का ही लाना
झूठ प्रतिपल छल रहा है, सच समाधि में पल रहा है
तो कहो हम हैं दशानन, युद्ध अपना लड़ रहे हैं
राम है अंतस में अपने, ज्ञान शुद्धि कर रहे हैं

शंख का आक्रंद सुनकर, काल खप्पर भर रहा है
जान कर संगीत कोई, जाप जंतर कर रहा है
एक ध्वनि और दो ध्वजा, ये बात संभव कर रहे हैं
तो कहो हम हैं दशानन, युद्ध अपना लड़ रहे हैं
राम है अंतस में अपने, ज्ञान शुद्धि कर रहे हैं

अर्थ का सामर्थ्य भारी, ले रहा प्रतिशोध अविरल
शोध लेकर के खड़ा है, ध्यान ध्रुव उपचार प्रतिपल
कर्म गीता में जल रहे हैं, नित हवन पूजन कर रहे हैं
तो कहो हम हैं दशानन, युद्ध अपना लड़ रहे हैं
राम है अंतस में अपने, ज्ञान शुद्धि कर रहे हैं

©Gautam
  राम है अंतस में
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Gautam

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