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पथरीले रास्ते पर मेरे अवतरण दिवस पर पथरीले रास्ते

पथरीले रास्ते पर मेरे अवतरण दिवस पर
पथरीले रास्ते पर पच्चीस कदम चलकर,
कुछ ही सीख सका हूँ संभल सभल कर,
इस जिन्द़गी के हर दौर युगो की तरह हैं,
कैसे बीताये जीवन कैसी कैसी जिरह कर।
हर शक्ल दे रही समझायिशे इसकदर कुछ,
रूक जाओं मोड़ पर हर बार तुम सुलह कर।
कितने ही दर्द सहकर पहुचें है इस सफर तक,
मंजिल से रही हैं दूरी अबतक इतना चलकर।
पथरीले रास्ते पर मेरे अवतरण दिवस पर
पथरीले रास्ते पर पच्चीस कदम चलकर,
कुछ ही सीख सका हूँ संभल सभल कर,
इस जिन्द़गी के हर दौर युगो की तरह हैं,
कैसे बीताये जीवन कैसी कैसी जिरह कर।
हर शक्ल दे रही समझायिशे इसकदर कुछ,
रूक जाओं मोड़ पर हर बार तुम सुलह कर।
कितने ही दर्द सहकर पहुचें है इस सफर तक,
मंजिल से रही हैं दूरी अबतक इतना चलकर।