जिदंगी के सफर मे कुछ इस कदर चलते गये..... कि दिखी न अगर सूरत उनकी,तो मूरत बना के बसा दिया उनको। जिदंगी का सफर अकेले बढता गया.......! सफर मे मुकाम आये,ठहराव भी पडे.......! सोचा, सायराना 'हाल-ऐ-जिदंगी 'का अब बत्तिया भी जाये उनसे, पर जब कुछ भी बता न पाये उनको....तो शब्दो को बटोरा और 'यादो कि लिखावट' मे सजा दिया उनको # यादो की लिखावट