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मेरी पहचान मेरा Attitude है, मेरे Attitude में सिर

मेरी पहचान मेरा Attitude है,
मेरे Attitude में सिर्फ़ Gratitude है  सृष्टि के प्रारंभ में मनुष्य सरल था। समय बदला, लोगों में परिवर्तन भी आने लगा,,, और फिर आधुनिक युग तक आते आते ये "एटीट्यूड" शब्द अपना आकार दिखाने लगी, और एक निम्न मानसिकता का प्रतीक बन गई। सरल लोग कभी इसको सहज रूप से स्वीकार नहीं किए, वह कभी टूट गए, कभी शक्त हो गए, कभी हार गए तो कभी इस आधुनिक बीमारी से जीतने के लिए संघर्ष करते रहे। शिक्षा, परवरिश, संस्कार जैसे गुढ़ शब्द भी इसके प्रभाव में आकर अपना अस्तित्व खोने लगे। 

मैं खुद एटीट्यूड दिखानेवाले लोगों से दूर रहने की कोशिश करती रहती हूं,, क्यों कि मैं डरती हूं स्वयं के अपमान से। अपमान बोध सा महसूस होता, घुटन सी अनुभव करती... और जहां ऐसा लगे वहां न जाना ही बेहतर, यही जानती हूं मैं। 

पहले के लोग बहुत सरल थे, निष्कपट थे.. मां, पापा के मुंह से सुनती आ रही। मुझे भी मन करता है कि ऐसे लोगों से काश मिल पाती मैं जिनके स्वभाव और व्यवहार आल्हाददायक था। पर असंभव है न, क्यों कि वह प्राण मृत जो ठहरे। अब तो संदेह की मात्रा इतनी बढ़ चुकी है, इंसान इंसान को दुश्मन की नजरिए से देखने लगा है.. कोई आपके तरफ देख कर मुस्कुरा देता है तो आप सोच में पड़ जाते हो इसके  मुस्कुराने के पीछे की वजह क्या है,, 
इस माहौल में एटीट्यूड का रहना स्वाभाविक है। 🙆 

अब हम अपनों से, रिश्तेदारों से दूर जा चुके है, इतना दूर कि शायद फिर कभी करीब आ सके। उसने तो कॉल नहीं किया, उसने मैसेज नहीं किया तो हम क्यों करे, क्या हमारा कोई आत्म सम्मान नहीं?? वह जहां रहता है क्या वहां नया साल नहीं आया??, जो हम जाए अभिनंदन देने,,, कुछ क्रोध, कुछ  अभिमान, आत्म सम्मान का मुखौटा मिलकर ही एटीट्यूड का निर्माण करते है और हम इसके अंदर खुद के सरलता को छुपा कर महान बनने की कोशिश करते रहते, सोचते कि हमारा एक रेपुटेशन बन जाएगा लोगों के बीच, लोग हमे सम्मान देंगे। पर सम्मान नहीं, उनका डर है ये जो आपको फूलों का हार लग रहा। आपके एटीट्यूड के चक्कर में लोग अपना आत्म सम्मान खोना नहीं चाहते, लोग नहीं चाहते कि आप अपने व्यवहार के द्वारा उनका अपमान करो... इसलिए वह दूर दूर रहने की कोशिश करते।
मेरी पहचान मेरा Attitude है,
मेरे Attitude में सिर्फ़ Gratitude है  सृष्टि के प्रारंभ में मनुष्य सरल था। समय बदला, लोगों में परिवर्तन भी आने लगा,,, और फिर आधुनिक युग तक आते आते ये "एटीट्यूड" शब्द अपना आकार दिखाने लगी, और एक निम्न मानसिकता का प्रतीक बन गई। सरल लोग कभी इसको सहज रूप से स्वीकार नहीं किए, वह कभी टूट गए, कभी शक्त हो गए, कभी हार गए तो कभी इस आधुनिक बीमारी से जीतने के लिए संघर्ष करते रहे। शिक्षा, परवरिश, संस्कार जैसे गुढ़ शब्द भी इसके प्रभाव में आकर अपना अस्तित्व खोने लगे। 

मैं खुद एटीट्यूड दिखानेवाले लोगों से दूर रहने की कोशिश करती रहती हूं,, क्यों कि मैं डरती हूं स्वयं के अपमान से। अपमान बोध सा महसूस होता, घुटन सी अनुभव करती... और जहां ऐसा लगे वहां न जाना ही बेहतर, यही जानती हूं मैं। 

पहले के लोग बहुत सरल थे, निष्कपट थे.. मां, पापा के मुंह से सुनती आ रही। मुझे भी मन करता है कि ऐसे लोगों से काश मिल पाती मैं जिनके स्वभाव और व्यवहार आल्हाददायक था। पर असंभव है न, क्यों कि वह प्राण मृत जो ठहरे। अब तो संदेह की मात्रा इतनी बढ़ चुकी है, इंसान इंसान को दुश्मन की नजरिए से देखने लगा है.. कोई आपके तरफ देख कर मुस्कुरा देता है तो आप सोच में पड़ जाते हो इसके  मुस्कुराने के पीछे की वजह क्या है,, 
इस माहौल में एटीट्यूड का रहना स्वाभाविक है। 🙆 

अब हम अपनों से, रिश्तेदारों से दूर जा चुके है, इतना दूर कि शायद फिर कभी करीब आ सके। उसने तो कॉल नहीं किया, उसने मैसेज नहीं किया तो हम क्यों करे, क्या हमारा कोई आत्म सम्मान नहीं?? वह जहां रहता है क्या वहां नया साल नहीं आया??, जो हम जाए अभिनंदन देने,,, कुछ क्रोध, कुछ  अभिमान, आत्म सम्मान का मुखौटा मिलकर ही एटीट्यूड का निर्माण करते है और हम इसके अंदर खुद के सरलता को छुपा कर महान बनने की कोशिश करते रहते, सोचते कि हमारा एक रेपुटेशन बन जाएगा लोगों के बीच, लोग हमे सम्मान देंगे। पर सम्मान नहीं, उनका डर है ये जो आपको फूलों का हार लग रहा। आपके एटीट्यूड के चक्कर में लोग अपना आत्म सम्मान खोना नहीं चाहते, लोग नहीं चाहते कि आप अपने व्यवहार के द्वारा उनका अपमान करो... इसलिए वह दूर दूर रहने की कोशिश करते।

सृष्टि के प्रारंभ में मनुष्य सरल था। समय बदला, लोगों में परिवर्तन भी आने लगा,,, और फिर आधुनिक युग तक आते आते ये "एटीट्यूड" शब्द अपना आकार दिखाने लगी, और एक निम्न मानसिकता का प्रतीक बन गई। सरल लोग कभी इसको सहज रूप से स्वीकार नहीं किए, वह कभी टूट गए, कभी शक्त हो गए, कभी हार गए तो कभी इस आधुनिक बीमारी से जीतने के लिए संघर्ष करते रहे। शिक्षा, परवरिश, संस्कार जैसे गुढ़ शब्द भी इसके प्रभाव में आकर अपना अस्तित्व खोने लगे। मैं खुद एटीट्यूड दिखानेवाले लोगों से दूर रहने की कोशिश करती रहती हूं,, क्यों कि मैं डरती हूं स्वयं के अपमान से। अपमान बोध सा महसूस होता, घुटन सी अनुभव करती... और जहां ऐसा लगे वहां न जाना ही बेहतर, यही जानती हूं मैं। पहले के लोग बहुत सरल थे, निष्कपट थे.. मां, पापा के मुंह से सुनती आ रही। मुझे भी मन करता है कि ऐसे लोगों से काश मिल पाती मैं जिनके स्वभाव और व्यवहार आल्हाददायक था। पर असंभव है न, क्यों कि वह प्राण मृत जो ठहरे। अब तो संदेह की मात्रा इतनी बढ़ चुकी है, इंसान इंसान को दुश्मन की नजरिए से देखने लगा है.. कोई आपके तरफ देख कर मुस्कुरा देता है तो आप सोच में पड़ जाते हो इसके मुस्कुराने के पीछे की वजह क्या है,, इस माहौल में एटीट्यूड का रहना स्वाभाविक है। 🙆 अब हम अपनों से, रिश्तेदारों से दूर जा चुके है, इतना दूर कि शायद फिर कभी करीब आ सके। उसने तो कॉल नहीं किया, उसने मैसेज नहीं किया तो हम क्यों करे, क्या हमारा कोई आत्म सम्मान नहीं?? वह जहां रहता है क्या वहां नया साल नहीं आया??, जो हम जाए अभिनंदन देने,,, कुछ क्रोध, कुछ अभिमान, आत्म सम्मान का मुखौटा मिलकर ही एटीट्यूड का निर्माण करते है और हम इसके अंदर खुद के सरलता को छुपा कर महान बनने की कोशिश करते रहते, सोचते कि हमारा एक रेपुटेशन बन जाएगा लोगों के बीच, लोग हमे सम्मान देंगे। पर सम्मान नहीं, उनका डर है ये जो आपको फूलों का हार लग रहा। आपके एटीट्यूड के चक्कर में लोग अपना आत्म सम्मान खोना नहीं चाहते, लोग नहीं चाहते कि आप अपने व्यवहार के द्वारा उनका अपमान करो... इसलिए वह दूर दूर रहने की कोशिश करते। #YourQuoteAndMine #आप_ही_बताइए