ख़ुद को दर्द देकर यूँही घर की खुशियों के ख़ातिर जद्दो-जहद करता है रोज़ है मेहनती पिता या है भाई सब्र से चुपचाप उठा लेता पहाड़ जैसी ज़िम्मेदारियों को हँसते हुए बिना गिला शिकवा किए— % & A note to a father