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ख़ुद को दर्द देकर यूँही घर की खुशियों के ख़ातिर ज

ख़ुद को दर्द देकर यूँही 
घर की खुशियों के ख़ातिर
जद्दो-जहद करता है रोज़ 
है मेहनती पिता या है भाई 
सब्र से चुपचाप उठा लेता 
पहाड़ जैसी ज़िम्मेदारियों को
हँसते हुए बिना गिला शिकवा किए— % & A note to a father
ख़ुद को दर्द देकर यूँही 
घर की खुशियों के ख़ातिर
जद्दो-जहद करता है रोज़ 
है मेहनती पिता या है भाई 
सब्र से चुपचाप उठा लेता 
पहाड़ जैसी ज़िम्मेदारियों को
हँसते हुए बिना गिला शिकवा किए— % & A note to a father

A note to a father