इस आसान लगने वाले कठिन सफ़र में जब इक रोज़ थककर बैठा और खोली जीवन यात्रा की वो पोटली और निकाली सिलवट पड़ी ख़्वाहिशों की वो फ़ेहरिस्त क्या खोया क्या पाया की गणित में एक उम्र बीती मग़र ख़्वाहिशों की गठरी भारी हर कोई बात करता भीड़ की मग़र मन मे मौजूद ख़्वाहिशों की भीड़ का क्या यहाँ वहाँ नज़र दौड़ जाए जहाँ उस छितिज तक बस ख़्वाहिशें ही ख़्वाहिशें बिखरीं पड़ी है अब अपनी दो हथेलियों से क्या छोड़ू क्या समेटु प्रश्न बड़ा है स्वप्नों से यथार्थ का मैंने बस यहीं अर्थ गढ़ा है! ख़्वाहिशों की फ़ेहरिस्त (कविता) इस आसान लगने वाले कठिन सफ़र में जब इक रोज़ थककर बैठा और खोली जीवन यात्रा की वो पोटली और निकाली सिलवट पड़ी ख़्वाहिशों की वो फ़ेहरिस्त क्या खोया क्या पाया