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मिलने की ख्वाहिश इतनी थी, मैं शाम सवेरा भूल गया। र

मिलने की ख्वाहिश इतनी थी,
मैं शाम सवेरा भूल गया।
रात अंधेरी तंग गलियों में,,
मैं तुम्हे ढूंढने निकल गया।
मिलने का दिन मिला ही है,
तो वक्त देखना पसंद नहीं।
जैसे तैसे घर के शीशे से,,
नूर ए हुस्न दिखा ही सही।
गुलाबी आंखो में आंखे थी,
एक गुलदस्ता झुककर दे दिया।
मिलने की ख्वाहिश इतनी थी,,
मैं शाम सवेरा भूल गया।।

©Satish Kumar Meena #proposeday
मिलने की ख्वाहिश इतनी थी,
मैं शाम सवेरा भूल गया।
रात अंधेरी तंग गलियों में,,
मैं तुम्हे ढूंढने निकल गया।
मिलने का दिन मिला ही है,
तो वक्त देखना पसंद नहीं।
जैसे तैसे घर के शीशे से,,
नूर ए हुस्न दिखा ही सही।
गुलाबी आंखो में आंखे थी,
एक गुलदस्ता झुककर दे दिया।
मिलने की ख्वाहिश इतनी थी,,
मैं शाम सवेरा भूल गया।।

©Satish Kumar Meena #proposeday