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:वो चाँद चौदहवीं की सी सज के चली आयी, मैं सितारों

:वो चाँद चौदहवीं की सी सज के चली आयी,
मैं सितारों सा हुआ पागल पूरी रात ना सोया।
वो सुबह सर्दी की ओढ़े कुहासे की जैसे घूंघट लिए निकली,
  मैं परिंदे सा आवारा मुँह अंधेरे निकल आया।
वो मलयज सी सुरभित मलयनिल सी चली आयी,
बंधा घटाओं सा संग उसके चला आया।
      वो चाँद चौदहवीं की सी सज के चली आयी,
मैं सितारों सा हुआ पागल पूरी रात ना सोया।
वो संगीत सी गूँजी फ़िज़ाओं में,मैं स्वर जैसे किसी कंठ से निकल आया,
वो वसंत बेबाक सी आयी ,
मैं मंजर जैसे हुआ आम का मदमाया,
वो फागुन की मस्ती सी छाई
मैं अबीरे सा हवाओं में उड़ आया।
वो साहिल समंदर का,मैं उससे लहरों सा टकराया,
वो शरारत आँखों की कोई और मैं राही कोई जैसे रास्ता खोया,
वो कोई धूप सुनहरी जैसे और मैं बादलों का हूँ कोई साया।
वो शमां महफिल की ,
मैं परवाने सा पागल खुद को जला आया,
         वो चाँद चौदहवी  की सी सज के चली आई,
मैं सितारों सा हुआ पागल पूरी रात ना सोया।।
:वो चाँद चौदहवीं की सी सज के चली आयी,
मैं सितारों सा हुआ पागल पूरी रात ना सोया।
वो सुबह सर्दी की ओढ़े कुहासे की जैसे घूंघट लिए निकली,
  मैं परिंदे सा आवारा मुँह अंधेरे निकल आया।
वो मलयज सी सुरभित मलयनिल सी चली आयी,
बंधा घटाओं सा संग उसके चला आया।
      वो चाँद चौदहवीं की सी सज के चली आयी,
मैं सितारों सा हुआ पागल पूरी रात ना सोया।
वो संगीत सी गूँजी फ़िज़ाओं में,मैं स्वर जैसे किसी कंठ से निकल आया,
वो वसंत बेबाक सी आयी ,
मैं मंजर जैसे हुआ आम का मदमाया,
वो फागुन की मस्ती सी छाई
मैं अबीरे सा हवाओं में उड़ आया।
वो साहिल समंदर का,मैं उससे लहरों सा टकराया,
वो शरारत आँखों की कोई और मैं राही कोई जैसे रास्ता खोया,
वो कोई धूप सुनहरी जैसे और मैं बादलों का हूँ कोई साया।
वो शमां महफिल की ,
मैं परवाने सा पागल खुद को जला आया,
         वो चाँद चौदहवी  की सी सज के चली आई,
मैं सितारों सा हुआ पागल पूरी रात ना सोया।।