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निराशा और बेबसी आज अपने मकान में फंसे हुए दो महीन

निराशा और बेबसी

आज अपने मकान में फंसे हुए दो महीने हो गए । पिछले कुछ दिनों से मन बहुत बोझिल था की घर नहीं जा पा रहा । कोई रास्ता नहीं दिख रहा ।
 आज थोड़ा वक़्त निकल के सोशल मीडिया पे नजर दौड़ाई तो देखा कोई पांच सौ रुपए की टूटी साइकिल लेके दाने दाने का मोहताज परिवार को लेके चल रहा है , कोई ग्यारह बारह साल का लड़का रिक्शा में अपने माँ बाप को खींच रहा है , कोई नौकरी से निकाले जाने पर कंधे पर बैग लटकाये पानी की आधी बोतल लिए सड़के नाप रहा है । 
हम इन कमरों में बैठकर खुश होते है बारिश ओलावृष्टि देखकर , ये भी उनके लिए सजा है , इसमें भी वो सर छुपाने की जगह तलाशते है । 
सब देखकर मह्सूस हुआ की हम तो सिर्फ निराश है पर सड़को पर न जाने कितने लोग इस समय बेबस घूम रहे है । 

अधिकाँश चीजें है हमपे फिर भी बेवजह निराशा है , 
बेबस और लाचार इंसान से पूछो उसकी क्या अभिलाषा है , 
जिसके पेट में गया नहीं है एक भी निवाला कई दिनों से , 
उससे पूछोगे तो पता चलेगा होती क्या हताशा है । Niraasha Aur Bebasi
#PS #Nojoto #nojotohindi #Thoughts #Khayal #Lockdown #Niraasha #bebasi
निराशा और बेबसी

आज अपने मकान में फंसे हुए दो महीने हो गए । पिछले कुछ दिनों से मन बहुत बोझिल था की घर नहीं जा पा रहा । कोई रास्ता नहीं दिख रहा ।
 आज थोड़ा वक़्त निकल के सोशल मीडिया पे नजर दौड़ाई तो देखा कोई पांच सौ रुपए की टूटी साइकिल लेके दाने दाने का मोहताज परिवार को लेके चल रहा है , कोई ग्यारह बारह साल का लड़का रिक्शा में अपने माँ बाप को खींच रहा है , कोई नौकरी से निकाले जाने पर कंधे पर बैग लटकाये पानी की आधी बोतल लिए सड़के नाप रहा है । 
हम इन कमरों में बैठकर खुश होते है बारिश ओलावृष्टि देखकर , ये भी उनके लिए सजा है , इसमें भी वो सर छुपाने की जगह तलाशते है । 
सब देखकर मह्सूस हुआ की हम तो सिर्फ निराश है पर सड़को पर न जाने कितने लोग इस समय बेबस घूम रहे है । 

अधिकाँश चीजें है हमपे फिर भी बेवजह निराशा है , 
बेबस और लाचार इंसान से पूछो उसकी क्या अभिलाषा है , 
जिसके पेट में गया नहीं है एक भी निवाला कई दिनों से , 
उससे पूछोगे तो पता चलेगा होती क्या हताशा है । Niraasha Aur Bebasi
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