अपने ही भावों के द्वारा तुम अपने जीवन, अपने संसार और अपनी प्रकृति को सुधार सकते या बिगाड़ सकते हो। अपनी विचार शक्ति द्वारा अपने भीतर जैसा भवन बनाकर खड़ा करोगे बाह्य जीवन उसी के अनुरूप बनने लगेगा। जीवन क्या है।