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कोरा काग़ज़ Premium Challange-17 विषय 1 :- मज़दूर की

कोरा काग़ज़ Premium Challange-17
विषय 1 :- मज़दूर की ज़िन्दगी (चिंतन)

मज़दूर की ज़िन्दगी हमेशा से ही, बस मजदूरी करके बीत रही।
आज से नहीं अनादिकाल से ही, जग की यही एक रीत रही।

कुछ भी न बदला आज यहाँ, ना पहले किसी ने बदला था।
मज़दूरी करके जीवन बिताया, मुफ़लिसी से ही प्रीत रही।

क्या हुआ गर बदहाली में जीवन बीता, पर न कभी घबराया वो।
खुद के हौसलों से मुस्कुराता रहा, जीवन में यही एक जीत रही।

आज भी दुनिया मजदूरों को, सम्मान कहाँ वो देती है।
गरीबी का हमेशा मजाक बनाया, मिलती सिर्फ भीख रही।

जिन महलों में तुम शान से रहते, उन्हें मजदूरों ने ही बनाया है।
जग को तुम झूठी शान-ओ-शौकत दिखाते, मिल यही अब सीख रही। कोरा काग़ज़ Premium Challange-17
विषय 1 :- मज़दूर की ज़िन्दगी (चिंतन)

Pic Credit :- Pinterest

मज़दूर की ज़िन्दगी हमेशा से ही, बस मजदूरी करके बीत रही।
आज से नहीं अनादिकाल से ही, जग की यही एक रीत रही।
कोरा काग़ज़ Premium Challange-17
विषय 1 :- मज़दूर की ज़िन्दगी (चिंतन)

मज़दूर की ज़िन्दगी हमेशा से ही, बस मजदूरी करके बीत रही।
आज से नहीं अनादिकाल से ही, जग की यही एक रीत रही।

कुछ भी न बदला आज यहाँ, ना पहले किसी ने बदला था।
मज़दूरी करके जीवन बिताया, मुफ़लिसी से ही प्रीत रही।

क्या हुआ गर बदहाली में जीवन बीता, पर न कभी घबराया वो।
खुद के हौसलों से मुस्कुराता रहा, जीवन में यही एक जीत रही।

आज भी दुनिया मजदूरों को, सम्मान कहाँ वो देती है।
गरीबी का हमेशा मजाक बनाया, मिलती सिर्फ भीख रही।

जिन महलों में तुम शान से रहते, उन्हें मजदूरों ने ही बनाया है।
जग को तुम झूठी शान-ओ-शौकत दिखाते, मिल यही अब सीख रही। कोरा काग़ज़ Premium Challange-17
विषय 1 :- मज़दूर की ज़िन्दगी (चिंतन)

Pic Credit :- Pinterest

मज़दूर की ज़िन्दगी हमेशा से ही, बस मजदूरी करके बीत रही।
आज से नहीं अनादिकाल से ही, जग की यही एक रीत रही।