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पहले मुस्लिम आक्रांता ओं के बाहर बता पूर्ण शासन और

पहले मुस्लिम आक्रांता ओं के बाहर बता पूर्ण शासन और उसके बाद में ब्रिटिश के उप निदेशक राज्य के दौरान सनातन धर्म की पुण्य भूमि भारत की आत्मा को कितनी चोट पहुंचाई नेतृत्व किसी से छिपा हुआ नहीं है पहले बड़े पैमाने पर मत परिवर्तन कर ले लोगों ने राम को अपनाया और बाद में ईसाई बने स्वतंत्रा के बाद हिंदुओं के इस्लाम में जाने के घटना में तो कमी आई लेकिन इस आबादी का प्रभाव बढ़ता गया रास्ता ही मनीष ने भारतीय संविधान में अपने धर्म के प्रचार प्रसार के स्वतंत्र के मूल अधिकारियों की आड़ में धोखा छल कपट है और प्रोपेगेंडा के सारे गरीब और अशिक्षित जातियों पर जनजातियों के मध्य परिवर्तन जुटी हुई है या द्वारा भारतीय संस्कृति और संयोजित आक्रमण और उसके विपरीत परिणाम के प्रति जिज्ञासु पाठकों को सचेत करने के लिए डॉक्टर शैलेंद्र कुमार निषाद और पूर्वोत्तर भारत का संस्कृत संहार नामक पुस्तक की रचना की लगभग 700 साल की गुलामी के कारण इस देश में एक ऐसा वर्ग पैदा हो गया जो हीनता की ग्रंथि से ग्रस्त था और उसमें प्राचीन ज्ञान विज्ञान और उससे उपजे विवाद के संदेश हरकतें की नजर से देखता था वर्ष 1947 में स्वतंत्र प्राप्ति के बाद यह भावना धीरे-धीरे और बलवती होती गई आज स्थिति यह है कि पूर्वोत्तर भारत में असम और त्रिपुरा को छोड़कर सभी राज्यों में स्थाई बहुलता में है और झारखंड जैसे राज्यों में ईसाई की बड़ी आबादी है

©Ek villain #सांस्कृतिक की रक्षा के सूत्र

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पहले मुस्लिम आक्रांता ओं के बाहर बता पूर्ण शासन और उसके बाद में ब्रिटिश के उप निदेशक राज्य के दौरान सनातन धर्म की पुण्य भूमि भारत की आत्मा को कितनी चोट पहुंचाई नेतृत्व किसी से छिपा हुआ नहीं है पहले बड़े पैमाने पर मत परिवर्तन कर ले लोगों ने राम को अपनाया और बाद में ईसाई बने स्वतंत्रा के बाद हिंदुओं के इस्लाम में जाने के घटना में तो कमी आई लेकिन इस आबादी का प्रभाव बढ़ता गया रास्ता ही मनीष ने भारतीय संविधान में अपने धर्म के प्रचार प्रसार के स्वतंत्र के मूल अधिकारियों की आड़ में धोखा छल कपट है और प्रोपेगेंडा के सारे गरीब और अशिक्षित जातियों पर जनजातियों के मध्य परिवर्तन जुटी हुई है या द्वारा भारतीय संस्कृति और संयोजित आक्रमण और उसके विपरीत परिणाम के प्रति जिज्ञासु पाठकों को सचेत करने के लिए डॉक्टर शैलेंद्र कुमार निषाद और पूर्वोत्तर भारत का संस्कृत संहार नामक पुस्तक की रचना की लगभग 700 साल की गुलामी के कारण इस देश में एक ऐसा वर्ग पैदा हो गया जो हीनता की ग्रंथि से ग्रस्त था और उसमें प्राचीन ज्ञान विज्ञान और उससे उपजे विवाद के संदेश हरकतें की नजर से देखता था वर्ष 1947 में स्वतंत्र प्राप्ति के बाद यह भावना धीरे-धीरे और बलवती होती गई आज स्थिति यह है कि पूर्वोत्तर भारत में असम और त्रिपुरा को छोड़कर सभी राज्यों में स्थाई बहुलता में है और झारखंड जैसे राज्यों में ईसाई की बड़ी आबादी है

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