ग़ज़ल बेबसीं मुझे इतना अंदर छोड़े आयी जैसे रास्तों को उदासी मोड़े आयीं . एक जंगल रोता हैं खलवत में यूँ जब उसको मेरी मायूसी तब ओड़े आयीं . ये जो लड़की इश्क़ वाली, वफ़ा वाली देखो कुम्हलायें फूल जो तोड़े आयी . फिर न जानें यादों की तारीकियों में रुसवा समंदर को जो जोड़े आयी -शेखऱ 🌺 आकांशा बाईसा #peace