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कोई लौटा दे मुझको मेरे बचपन के सुनहरे दिन, कहीं नु

कोई लौटा दे मुझको
मेरे बचपन के सुनहरे दिन,
कहीं नुक्कड़ पे बैठे
दोस्तों की महफ़िलों के दिन।
सुबह होती है दिन ढल जाता है
अन्जान शहरों में,
नहीं होती है रौनक शाम की
अब दोस्तों के बिन।।




©Shrikant Dubey✍🏻 #बचपन #childernsday #friends #childhood
कोई लौटा दे मुझको
मेरे बचपन के सुनहरे दिन,
कहीं नुक्कड़ पे बैठे
दोस्तों की महफ़िलों के दिन।
सुबह होती है दिन ढल जाता है
अन्जान शहरों में,
नहीं होती है रौनक शाम की
अब दोस्तों के बिन।।




©Shrikant Dubey✍🏻 #बचपन #childernsday #friends #childhood