हृदय के डब्बे में बंद, 'यकीन' की मिश्री को! बचाना है फिर, 'शक' की नन्हीं माखी से! 'भय' के मर्तबान, को बचाना है चटकने से! 'साहस' के पुष्प, उकेरे गये हैं इसपर क्योंकि! बचाना है, कुछ 'अश्क़' जो कोरों पर आखिरी मुलाकात की भेंट स्वरूप मिली थीं! और 'मुस्कान' भी, जो अधर पर बेसुध हो बिखरती है 'जीवन' शाख़ से टूटकर! बचाने हैं कुछ धुंधले सपने!