ये पक्के #मकान नही वो कच्चे ही अच्छे थे।
युही ख़ामख़ा बड़े हुए,हम बच्चे ही अच्छे थे।
रिश्तो से बिक जाते बस तब मोलभाव के कच्चे थे।
वोटों की कोई समझ न थी नोटों से #सिक्के ज्यादा थे।
#रणभूमि क्या है पता न था,"रन"भूमि के तो दादा थे।
अब आंख खुली #सपना टूटा है,सबका मोल लगाना है।
सबकुछ ही मतलब से है,बिन मतलब की बस बाधा है
व्यथाकथा ही ऐसी है,सुख लोगो के दुख मिलता है। #प्यार#शतरंज#लड़ाई#बगुलाभागताई