भरके आंखो में बादल कभी रोने को जी चाहता है एक शाम उनके लिए भी साहब गाने को जी चाहता है वह बरसे नहीं कभी मैं रोज बरसता रहा वह तरसे नहीं कभी मैं रोज तरसता रहा इस मौसम के सावन में भी कुछ पाने को जी चाहता है भरा है बादल बूंदों से आज रिमझिम रिमझिम बरसना चाहता है बरसने को जी चाहता है