करम गति टारै नाहिं टरी॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहॉं वह पारधि कहॅं वह मिरग चरी। कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट-जोन परि॥ २॥ पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर बिपति परी। कहत कबीर सुनो भै साधो होने होके रही॥ ३॥ ©श्री सबरी भजन मंडल 🙏🌹करम गति टारै नाहिं टरी॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहॉं वह पारधि कहॅं वह मिरग चरी। कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट-जोन परि॥ २॥