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Part-1 छोटी सी खाहिश थी दिल की ना था कोई ख्वाब बड

Part-1

छोटी सी खाहिश थी दिल की ना था कोई ख्वाब बड़ा।
हो धूप खिली... बादल छट्ठे... दूर दराज कोई छांव सहित पेड़ बड़ा।
डगर डगर ये कहती है धीमे धीमे कदम बढ़ा।
है सांस थकी जोरों शोरों लड़खाते पाव भी बोले राही से 
क्या ठहरे कुछ देर जरा ? 
होसलो की कड़की बिजली बोली तब चल हो त्यार हो उठ खड़ा।
मगर कांटो से कर कर मुलाकात में दे रहा था खुदको सज़ा।
छोटी सी खाहिश थी दिल की ना था कोई ख्वाब बड़ा।
हो धूप खिली... बादल छट्ठे... दूर दराज कोई छांव सहित पेड़ बड़ा।

©Ritik 
  #खाहिश
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Ritik

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