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शून्य होता अस्तित्व मेरा ,शून्य होती मेरी पहचान ,

 शून्य होता अस्तित्व मेरा ,शून्य होती मेरी पहचान ,
इतनी बड़ी दुनिया में , ख़ुद से रहती  मैं अनजान,

ईश तुल्य  पिता  ने  सर पर जो रखा हाथ अपना,
मिल गया अस्तित्व मेरा,बने पिता ही मेरी पहचान,

ऊँगली थाम कर चलना सिखाया,पापा ने जब मुझे,
हर राह  हर डगर  पर , अथाह मिला मुझे सम्मान,

उनके ही आदर्शों पर ,अब नेक नियति से चलती हूँ,
सर उठाकर  जीने का ,   मुझको  मिला  अभिमान,

वो बनकर   मेरी  परछाई , सदा  अंग संग चलते थे,
उनके आशीर्वाद का प्रतिफल,मुझे मिला जीने का सामान।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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