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मैं जिसे मोहब्बत मानकर बैठा घर में वो कबूतर उड़ा र

मैं जिसे मोहब्बत मानकर बैठा घर में
वो कबूतर उड़ा रही थी शहर में
कमबख्त! दिल हुआ था इस कदर पागल
गजल आ ही नहीं रही थी बहर में
इसे साइंस से ही समझ लेते हैं आओ
आग लगती ही नहीं है जिगर में..

©ABRAR
  मैं जिसे मोहब्बत मान के बैठा था घर में
#scienceday
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ABRAR

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मैं जिसे मोहब्बत मान के बैठा था घर में #scienceday

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