(मेरी लिखित नही है फिर भी साझा करता हूँ,दीवानगी है गायकी मेरी इसलिए लिखता हूँ) बशीर बद्र की शायरी आपके सामने। मतला है: शम्मा से रौशनी की बात करो चाँद से चाँदनी की बात करो। जीने वालों तुम्हें ख़ुदा की क़सम मौत से ज़िन्दगी की बात करो। न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की कईसाल से कुछ ख़बर ही नहीं कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की उजालों किपरियाँ नहाने लगी नदी गुनगुनाई ख़यालात की मैं चुप था तो चलती हवा रुक गयी ज़बां सब समझते हैं जज़्बात की सितारों को शायद खबर ही नहीं मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की मुकद्दर मेरे चश्म-ए-पुर अब कहाँ बरसती है रात बरसात की सितारों को शायद खबर ही नहीं मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की। #शायरी #संगीत