पाक़ और अज़ीज़ वह वक़्त आ गया मुबारक़ हर बंदे को रमज़ान की शक़्ल में ख़ुदा आ गया तसव्वुर और इंतज़ार था जिसकी रोशनी का नज़र आज मुझे वो चाँद आ गया रमज़ान की शक़्ल में ख़ुदा आ गया.... फिरता था दर बदर जिस परवर दीग़र की ज़ुस्तज़ू में बन के मेरा मसीहा घर वो मेरे आ गया किये हों गर गुनाह कोई क़ुबूल करने का उन्हें मुक़म्मल मौक़ा आ गया रमज़ान की शक़्ल में ख़ुदा आ गया.... लगा लो दुश्मन को भी गले भुला के सब शिक़वे और गिले अल्लाह के हर बंदे में खुद अल्लाह नज़र आ गया रमज़ान की शक्ल में ख़ुदा आ गया...... रहमतों का उसकी बरसने का मौसम आ गया मन्नतों के पूरी होने का अब वक़्त आ गया रमज़ान की शक़्ल में ख़ुदा आ गया - विनीत ताम्बी #रमजानमुबारक