#तीन_कुण्डलिया_छंद (1) नाता भैया उम्र का,होता नहीं विशिष्ट। लेखन की गति दे सखे,'संज्ञा' आप वरिष्ठ।। 'संज्ञा' आप वरिष्ठ,शिष्टता बहुत ज़रूरी। हो भूलें स्वीकार,छोड़कर के मगरूरी।। कह सतीश कविराय,यही मन मेरा गाता। होता नहीं विशिष्ट,उम्र का भैया नाता।। (2) छाया बेहद आजकल,कवि बनने का शौक़। खूब लगाते बन्धु जो,इधर-उधर की झौंक।। इधर-उधर की झौंक,टोकने पर कुढ़ जाते। वो ही केवल शेर,फिरें चहुँदिशि चिल्लाते।। कह सतीश कविराय,अजब लेखन की माया। कवि बनने का शौक़,आजकल बेहद छाया।। (3) मेरे प्रिय भाई न लें,अपने ऊपर बात। दिल से निकले शब्द में,पेश किये ज़ज़्बात।। पेश किये ज़ज़्बात,आपको नमन् करें जो। उनसे रहते दूर,सदा विष-वमन करें जो।। कह सतीश कविराय,मीत जो मुझको टेरे। अपने ऊपर बात,न लें भाई प्रिय मेरे। ©सतीश तिवारी 'सरस' #पेश_किये_ज़ज़्बात