आज़ाद तो हैं, कुछ बंदिशे ही सही। कर्म किए तो नही, जज़्बात ही सही। गुमान तो है, कुछ निभाया न सही। मतलब ही बदल जाता है आज़ादी का; सभी का तो नही, चंद लोगों का सही। क्या सच में हमारी बेटियां आज़ाद हैं?? सिर्फ देर रात ही नहीं, बात है माँ के पेट की भी। लहरता आँचल जो है, तिरंगा ही सही। नेता की जुबां पर पड़ोसी आपस में लड़ पड़ते हैं। दुसरे धर्म का जो है, पुरानी दोस्ती ही सही। क्या कोई सच नहीं बोलेगा ? सब अपने अपने नेताओं को ईश्वरीय आज्ञा समझ कर केवल हाँ में हाँ मिलायेंगे ? दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि पक्ष-प्रतिपक्ष के नेता राष्ट्रीय सुरक्षा के इतने गंभीर मसले को वोटों के ध्रवुीकरण के लिए प्रयोग कर रहे हैं ! वे अपने साठ सालों के पापों के हिसाब व ये अपने छह साल के सवालों से बचने के लिए संसद में बैठकर रोज़ नया बेहूदा डमरू बजाते हैं और देश/मिडिया सब नाचने लगते हैं ! तुम्हारी पार्टियों के ये स्व-घोषित प्रजापति 5-10 साल में निकल लेंगे, लेकिन ये देश था, है, रहेगा🇮🇳