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अन्न्दाता के अन्न से जग सारा जगता है, शुक्रगुजारी

अन्न्दाता के अन्न से जग सारा जगता है,
शुक्रगुजारी दूर रही, दाता को ही ठगता है !
उचित मोल की मांग, हर हाल में है जायज़,
बिचौलियों के चंगुल से, बचने को छटपटता है !!

बिचौलियों के पेट देखो, पहाड़ जैसे दिखते है,
किसानों के पेट तो, पीठ तक जा चिपकते है !
ग्राहक भी अमीर नहीं, उसकी सहज गुजर नहीं,
उसे आटे दाल के भाव चौगुने चुकाने पड़ते हैं !!

एक समय था पत्रकार जब, बेखौफ सच दिखाते थे,
नेता सच्चे पत्रकारों से अक्सर आंख चुराते थे !
आज के इस दौर में होड़ है तलवे चाटन की,
सत्ता के गलियारों की झूठन का लुफ्त उठाते है !!

शेषनकाल में संस्थाओं से, नेतागण घबराते थे,
उन दिनों के चुनाव भी निष्पक्ष नतीजे लाते थे !
कोई जीते कोई हारे, जन मन करता था मंजूर,
इवीएम के दौर में, नतीजे समझ ही न आते हैं !!

कलम के संदेशों का, एक ही सार निकलता है,
सभ्यता के मापदण्ड में, सच ही खरा उतरता है !
आओ सब मिलके अब, खोज लें खोए सच को,
झूठ के खैर रहत ना, जब सच परवान चड़ता है !! आवेश वाणी
अन्न्दाता के अन्न से जग सारा जगता है,
शुक्रगुजारी दूर रही, दाता को ही ठगता है !
उचित मोल की मांग, हर हाल में है जायज़,
बिचौलियों के चंगुल से, बचने को छटपटता है !!

बिचौलियों के पेट देखो, पहाड़ जैसे दिखते है,
किसानों के पेट तो, पीठ तक जा चिपकते है !
ग्राहक भी अमीर नहीं, उसकी सहज गुजर नहीं,
उसे आटे दाल के भाव चौगुने चुकाने पड़ते हैं !!

एक समय था पत्रकार जब, बेखौफ सच दिखाते थे,
नेता सच्चे पत्रकारों से अक्सर आंख चुराते थे !
आज के इस दौर में होड़ है तलवे चाटन की,
सत्ता के गलियारों की झूठन का लुफ्त उठाते है !!

शेषनकाल में संस्थाओं से, नेतागण घबराते थे,
उन दिनों के चुनाव भी निष्पक्ष नतीजे लाते थे !
कोई जीते कोई हारे, जन मन करता था मंजूर,
इवीएम के दौर में, नतीजे समझ ही न आते हैं !!

कलम के संदेशों का, एक ही सार निकलता है,
सभ्यता के मापदण्ड में, सच ही खरा उतरता है !
आओ सब मिलके अब, खोज लें खोए सच को,
झूठ के खैर रहत ना, जब सच परवान चड़ता है !! आवेश वाणी
ashokmangal4269

Ashok Mangal

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आवेश वाणी