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दिल-ए-सख़्त से दूरियों से नज़दीकियां हुई है ऐसे, स

दिल-ए-सख़्त से दूरियों से नज़दीकियां हुई है ऐसे,
सवाल कर रहा दिल-ए-ख़स्ता हो जैसे,

रास्ते पर चले थे,  आब-जू-ए-ज़ीसत हो ऐसे,
एक जिस्म की अलग-अलग शाख़-ए-गुल हो जैसे,

सोच के दरमियां दूरियां है इस कदर,  दिल-ए-मुज़्तरिब हो ऐसे,
दिखावे का प्यार में ख़ून-ए-दिल पीना हो जैसे।

ग़म-ए-दिल में लम्हा-लम्हा,‌ज़ख़्म-ए-दिल संभाला है ऐसे,
दुखों में रुक कर , थक के रह गया हो दिल-ए-नालाँ जैसे,

दिल-ए-गिरफ़्ता तेरी यादों में खोया हूं ऐसे,
सिद्क़-ए-दिल से सांस दिल-सिताँ का सिमरन कर रही हो जैसे। इस ग़ज़ल प्रतियोगिता का शीर्षक है " दूरी"

गजल प्रतियोगिता -02
साहित्य कक्ष 2.0 


आप सभी का स्वागत 💐 है अनुशीर्षक में
दिल-ए-सख़्त से दूरियों से नज़दीकियां हुई है ऐसे,
सवाल कर रहा दिल-ए-ख़स्ता हो जैसे,

रास्ते पर चले थे,  आब-जू-ए-ज़ीसत हो ऐसे,
एक जिस्म की अलग-अलग शाख़-ए-गुल हो जैसे,

सोच के दरमियां दूरियां है इस कदर,  दिल-ए-मुज़्तरिब हो ऐसे,
दिखावे का प्यार में ख़ून-ए-दिल पीना हो जैसे।

ग़म-ए-दिल में लम्हा-लम्हा,‌ज़ख़्म-ए-दिल संभाला है ऐसे,
दुखों में रुक कर , थक के रह गया हो दिल-ए-नालाँ जैसे,

दिल-ए-गिरफ़्ता तेरी यादों में खोया हूं ऐसे,
सिद्क़-ए-दिल से सांस दिल-सिताँ का सिमरन कर रही हो जैसे। इस ग़ज़ल प्रतियोगिता का शीर्षक है " दूरी"

गजल प्रतियोगिता -02
साहित्य कक्ष 2.0 


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mrsrosysumbriade8729

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