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शब्दों को पढ़ा है ! बोला है! महसूस किया है क्या

शब्दों को पढ़ा है !

 बोला है! 
महसूस किया है क्या कभी?
किसी शब्द की गर्दन पर उंगली रख कर सहलाया है कभी?
किसी शब्द के सीने पर कान लगाकर धडकनें सुनी है उसकी? 
तुम कहोगे एक शब्द की इतनी हस्ती ही नहीं! शब्द ही तो है!

कितने शब्दों पर तुमने ठहाके लगाए हैं! कुछ पर रोये भी होगे शावर में खड़े होकर! 
पर कभी किसी पन्ने पर लिखे ‘आं+सू’ को छूने से उंगलियों में नमक लगा है?

‘बा+रि+श’ पढ़कर सर पोछने का मन करता है? पैरों में कीचड़ महसूस होता है?
‘ब+च+प+न’ को अपने सीने पर रख कर देखो! कोई नंगा सा बच्चा घंटो चीटियों से खेलता हुआ दिख रहा है?

क्या कभी ‘त+न्हा+ई’ को पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे तुम्हारा कोई बेहद ख़ास तुम्हारे सीने में सरिया घुसाकर हंस रहा है तुम्हे देखकर और वो जगह आज तक न भरी हो?” 
‘श+म+शा+न’ पढ़कर कान के पीछे से ठंडी हवा गुज़रती है? वो बचपन का सपना दिखता है जिस पर कोई तुम्हारे सीने पर बैठ गया था और तुम उठ नहीं पा रहे थे?

‘भू+त’ पढ़ते हो तो अपने अगल बगल देखते हो तुम? कि इस रात में कोई पीछे से तुम्हारी स्क्रीन पर तो नहीं देख रहा? 
पीछे मत देखना मैंने कहा!

‘या+द’ सुनकर क्या तुम किसी भूले हुए शक्श की चेहरे की खाल को अपने नाखूनों से कुरेदते हो परत दर परत? उसे दर्द हो रहा है छोड़ दो उसे!
क्या कभी ‘वि+ध+वा’ पढने पर तुमने उसके साथ बैठ कर अपनी चूड़ियाँ तोड़ी? 

‘बाँ+झ’ पढ़कर उसके रोने के ठन्डे सुरों से सुर मिलाएं हैं कभी?
‘प्या+र’ सुनते हो तो कैसा महसूस होता है? मुझे लगता है तुम्हे घिन आती है! उबकाई सी!

अपना नाम सुनते हो तो कैसा लगता है? कोरापन?
 ऐसा लगता है जैसे कोई खाली डब्बा रोड पर किसी कबाड़ी के इंतज़ार में है?

तुमने याद किये है बहुत से शब्द! 
कुछ शब्द है जो तुम भूल गए! 
कुछ शब्द जो तुम भूलना चाहते हो पर भूल नहीं पा रहे! 
जो ‘वो’ कहती थी तुमसे तुम्हारे कंधे पर सर रख कर! तुम्हारे कानों में फुसफुसाती थी!
कितने कमज़ोर हो तुम एक उस एक अदने से 'शब्द' से हर रात हारते हो!
“तुमने शब्द पढ़े है! महसूस किया है कभी?”

©Ankur Mishra #तुमने #शब्दो #को #पढ़ा #है #मेहसूस #किया #है #कभी.....

#शब्द
शब्दों को पढ़ा है !

 बोला है! 
महसूस किया है क्या कभी?
किसी शब्द की गर्दन पर उंगली रख कर सहलाया है कभी?
किसी शब्द के सीने पर कान लगाकर धडकनें सुनी है उसकी? 
तुम कहोगे एक शब्द की इतनी हस्ती ही नहीं! शब्द ही तो है!

कितने शब्दों पर तुमने ठहाके लगाए हैं! कुछ पर रोये भी होगे शावर में खड़े होकर! 
पर कभी किसी पन्ने पर लिखे ‘आं+सू’ को छूने से उंगलियों में नमक लगा है?

‘बा+रि+श’ पढ़कर सर पोछने का मन करता है? पैरों में कीचड़ महसूस होता है?
‘ब+च+प+न’ को अपने सीने पर रख कर देखो! कोई नंगा सा बच्चा घंटो चीटियों से खेलता हुआ दिख रहा है?

क्या कभी ‘त+न्हा+ई’ को पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे तुम्हारा कोई बेहद ख़ास तुम्हारे सीने में सरिया घुसाकर हंस रहा है तुम्हे देखकर और वो जगह आज तक न भरी हो?” 
‘श+म+शा+न’ पढ़कर कान के पीछे से ठंडी हवा गुज़रती है? वो बचपन का सपना दिखता है जिस पर कोई तुम्हारे सीने पर बैठ गया था और तुम उठ नहीं पा रहे थे?

‘भू+त’ पढ़ते हो तो अपने अगल बगल देखते हो तुम? कि इस रात में कोई पीछे से तुम्हारी स्क्रीन पर तो नहीं देख रहा? 
पीछे मत देखना मैंने कहा!

‘या+द’ सुनकर क्या तुम किसी भूले हुए शक्श की चेहरे की खाल को अपने नाखूनों से कुरेदते हो परत दर परत? उसे दर्द हो रहा है छोड़ दो उसे!
क्या कभी ‘वि+ध+वा’ पढने पर तुमने उसके साथ बैठ कर अपनी चूड़ियाँ तोड़ी? 

‘बाँ+झ’ पढ़कर उसके रोने के ठन्डे सुरों से सुर मिलाएं हैं कभी?
‘प्या+र’ सुनते हो तो कैसा महसूस होता है? मुझे लगता है तुम्हे घिन आती है! उबकाई सी!

अपना नाम सुनते हो तो कैसा लगता है? कोरापन?
 ऐसा लगता है जैसे कोई खाली डब्बा रोड पर किसी कबाड़ी के इंतज़ार में है?

तुमने याद किये है बहुत से शब्द! 
कुछ शब्द है जो तुम भूल गए! 
कुछ शब्द जो तुम भूलना चाहते हो पर भूल नहीं पा रहे! 
जो ‘वो’ कहती थी तुमसे तुम्हारे कंधे पर सर रख कर! तुम्हारे कानों में फुसफुसाती थी!
कितने कमज़ोर हो तुम एक उस एक अदने से 'शब्द' से हर रात हारते हो!
“तुमने शब्द पढ़े है! महसूस किया है कभी?”

©Ankur Mishra #तुमने #शब्दो #को #पढ़ा #है #मेहसूस #किया #है #कभी.....

#शब्द