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सुबह से बहुत मस्ती की आपलोगों के प्रेमरंग में सराब

सुबह से बहुत मस्ती की
आपलोगों के प्रेमरंग में सराबोर मैं
अब थोड़ा सामाजिक संस्कारों से जुड़ा स्तंभ
आपके साथ साझा करूंगा
आशा करता हूँ इतना ही प्यार देंगे......
          

: कैप्शन देखें--------
                   :
              "परिवार"





गुलाब कोठारी
प्रधान संपादक
राजस्थान पत्रिका
(23/०4/2019)
अणुव्रत पुरुस्कार से सम्मानित । परिवार के हर सदस्य का संबंध पूर्वजन्म और पिछले कर्मो के आधार पर टिका होता है। जीवन का बड़ा लक्ष्य इस ऋणानुबंध से मुक्त होना है। नए ऋणानुबंध पैदा नहीं हों, ऎसे कर्म वर्तमान में किए जाएं। तभी भविष्य में नए जन्म से मुक्ति मिल सकेगी। इसलिए परिवार को ही मोक्ष का पहला हेतु मानना पड़ेगा। घर से भागने वाला, अपने ऋणों को न चुकाने वाला, उत्तरदायित्व से बचकर भागने वाला सदा कर्जदार ही रहेगा।

 

व्यक्ति का इस संसार में प्रवेश मां-बाप को निमित्त बनाकर होता है। वे भी प्रारब्ध और भूतकाल से प्रभावित होते हैं। वर्तमान के कर्म मां-बाप के साथ बहन-भाई तथा पति-पत्नी जैसे एक ही पीढ़ी के साथ अघिक होते हैं। इनका साथ अघिक काल तक रहता है। भविष्य की अवधारणा बच्चों के साथ अघिक जुड़ी होती है। जीवन के सर्वाघिक कर्म इसी क्षेत्र के होते हैं। भावनात्मक रूप से अत्यन्त गंभीर और गहरे होते हैं।
सत-रज-तम के आवरण यहीं रहकर समझे जाते हैं। इन्हीं का नाम संस्कार है। मन पर पड़ने वाली छाप का नाम ही तो संस्कार है। इसी से व्यक्ति के स्वरूप का निर्माण होता है। इसी स्वरूप से घर ही स्वर्ग और नर्क बन जाता है। प्रश्न यह है कि हम घर के इस स्वरूप के बारे में कितने चिंतित रहते हैं। इस स्कूल में प्रत्येक व्यक्ति एक किताब का काम करता है। हर घटना एक अनुभव है, जो आगे की घटना के समय उपयोगी होता है। इसी घर में देव-तिर्यच-पशु-मनुष्य रहते हैं। कुछ लोग शरीरजीवी, बुद्धिजीवी, कुछ मनोजीवी/ मनस्वी होते हैं। कहीं-कहीं कुछ आत्मजीवी भी मिल जाते हैं।
सुबह से बहुत मस्ती की
आपलोगों के प्रेमरंग में सराबोर मैं
अब थोड़ा सामाजिक संस्कारों से जुड़ा स्तंभ
आपके साथ साझा करूंगा
आशा करता हूँ इतना ही प्यार देंगे......
          

: कैप्शन देखें--------
                   :
              "परिवार"





गुलाब कोठारी
प्रधान संपादक
राजस्थान पत्रिका
(23/०4/2019)
अणुव्रत पुरुस्कार से सम्मानित । परिवार के हर सदस्य का संबंध पूर्वजन्म और पिछले कर्मो के आधार पर टिका होता है। जीवन का बड़ा लक्ष्य इस ऋणानुबंध से मुक्त होना है। नए ऋणानुबंध पैदा नहीं हों, ऎसे कर्म वर्तमान में किए जाएं। तभी भविष्य में नए जन्म से मुक्ति मिल सकेगी। इसलिए परिवार को ही मोक्ष का पहला हेतु मानना पड़ेगा। घर से भागने वाला, अपने ऋणों को न चुकाने वाला, उत्तरदायित्व से बचकर भागने वाला सदा कर्जदार ही रहेगा।

 

व्यक्ति का इस संसार में प्रवेश मां-बाप को निमित्त बनाकर होता है। वे भी प्रारब्ध और भूतकाल से प्रभावित होते हैं। वर्तमान के कर्म मां-बाप के साथ बहन-भाई तथा पति-पत्नी जैसे एक ही पीढ़ी के साथ अघिक होते हैं। इनका साथ अघिक काल तक रहता है। भविष्य की अवधारणा बच्चों के साथ अघिक जुड़ी होती है। जीवन के सर्वाघिक कर्म इसी क्षेत्र के होते हैं। भावनात्मक रूप से अत्यन्त गंभीर और गहरे होते हैं।
सत-रज-तम के आवरण यहीं रहकर समझे जाते हैं। इन्हीं का नाम संस्कार है। मन पर पड़ने वाली छाप का नाम ही तो संस्कार है। इसी से व्यक्ति के स्वरूप का निर्माण होता है। इसी स्वरूप से घर ही स्वर्ग और नर्क बन जाता है। प्रश्न यह है कि हम घर के इस स्वरूप के बारे में कितने चिंतित रहते हैं। इस स्कूल में प्रत्येक व्यक्ति एक किताब का काम करता है। हर घटना एक अनुभव है, जो आगे की घटना के समय उपयोगी होता है। इसी घर में देव-तिर्यच-पशु-मनुष्य रहते हैं। कुछ लोग शरीरजीवी, बुद्धिजीवी, कुछ मनोजीवी/ मनस्वी होते हैं। कहीं-कहीं कुछ आत्मजीवी भी मिल जाते हैं।