-एक मां- कहानी एक मां के परिश्रम की, उसकी सहनशीलता की... ⬇️Please read the caption below⬇️ #yqbaba #yqstory #stories #myfirststory #like #follow #tarunvijभारतीय ⬇️ "एक मां"⬇️ वो मां आज बहुत खुश थी, पिछले 4-5 वर्ष में शायद यह पहला मौका था जब उसके बर्ताव में कुछ बदलाव आया था। उस के साथ की सभी साथी अचानक से उसके बर्ताव में आए बदलाव से कुछ चकित से थें । जो औरत पिछले 5 साल से एक बार भी ना मुस्कुराई, सदा अपने कार्य में व्यस्त रहती थी, न ही किसी साथी से ज्यादा बात करती थी। यह कहानी है एक मां की जिसके मातृत्व को शायद भूला दिया गया। तो कहानी शुरू होती है 5 बरस पहले जब एक बड़ी सी काली गाड़ी एक पुरानी सी बिल्डिंग के कम्पाउंड में आकर रुकती है और दरवाजा खुलते ही एक नौजवान सूट बूट पहने हुए बाहर निकलता है, इस नौजवान की उम्र शायद 32-33 वर्ष होगी। गाड़ी से उतरने वाले इस व्यक्ती का नाम सुनिल है , सुनिल जोकि एक बड़ी मल्टीनेशन कम्पनि मे मनेजर की पोस्ट पर कार्यरत है तथा अच्छा वेतन प्राप्त करता है , रहने के लिये कम्पनि के द्वारा ही एक तीन बेडरुम फलैट शहर की एक सबसे महंगी व हाई क्लास सोसाय्टी मे मिला हुआ है। सुनील जोकि फाइनानंशियल तोर पर बहुत ही अच्छा है के परिवार में सुनील के अलावा तीन लोग और है, जिसमें कि सुनिल की मां शांति देवी है, उनकी धर्मपत्नी राधिका तथा एक 2 साल का बेटा अर्नव है। आज सुनिल की दफ्तर से छुट्टी का दिन है इसलिए वह शहर के एक कोने में बनी एक पुरानी सी जगह पर आया है, उसने इस जगह के बारे में बहुत कुछ सुना था। इस जगह के मेन गेट पर एक बड़ा सा जंग लगा बोर्ड लगा था, जंग लगे होने के कारण अक्षर कुछ साफ दिख नहीं रहे थे, सुनील ने भी ज्यादा गौर नहीं किया और गाड़ी से उतर कर गाड़ी के दूसरी ओर चल दिया जहां पैसेंजर की सीट पर उसकी मां श्रीमती शांति देवी बैठी थी, सुनील ने धीरे से दरवाजा खोला और अपनी मां को उतारा और कार की पिछली सीट पर रखे सामान की ओर मुड़ गया। शांति देवी जो कि इस जगह को बरसो से जानती थी शायद बिना अनजान बनाते हुए आगे बढ़ गई और सीधे एक बरामदे में जाकर रुक गई और एक क्षण के लिए चारों ओर देखने लगी मानो बरसो बाद आज फिर से वक्त उसे उसी जगह पर वापस ले आया। कुछ ध्यान में खोई हुई शांति देवी को पीछे से एक आवाज ही सुनाई दी जो कि सुनील की थी जो थोड़ी जल्दी में था "मां रुक क्यों गइ जल्दी करो मुझे देर हो रही है" यह कहते हुए सुनील बरामदे के आखिर में बने एक कमरे की ओर चल दिया जोकि श्रीमान सीताराम जी का कार्यालय है, जनाब सीताराम जी जो कि एक सज्जन पुरुष है , तथा पेशे से रिटायर्ड फौजी अफसर है तथा एक बेटी के बाप है, इनकी बेटी जो कि विवाहित है और विदेश में रहती हैं, इनकी पत्नी का इंतकाल बरसो पहले हो चुका है, अब अकेले हैं , परंतु अपने अकेलेपन का इलाज इन्होंने ढूंढ लिया और आज यह लाला अमीरचंद धर्मार्थ वृद्धाश्रम व अनाथालय के संचालक है, सुनील जिसकी आज के सिलसिले में पहले ही सीताराम जी से बात हो चुकी है आज अपनी मां को लाला अमीरचंद धर्मार्थ वृद्धाश्रम व अनाथालय में छोड़ने आया था।