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पुराने निसां मिटे नहीं और नई चोट लग रही हैं घर की

पुराने निसां मिटे नहीं
और नई चोट लग रही हैं
घर की आग बुझी नहीं
दिल को आग लग रही है
कड़कती बिजली का डर नहीं
सोई ज़िन्दगी डरा रही हैं
बाहर से ज्यादा दिल के अंदर
धड़कन शोर मचा रही है
मौत मुझे मंजूर है साहेब
ये हृदयघात डरा रहे है
सब अपनी में मशरूफ है
मुझे अपनी ही डरा रही है
ये बारिश बरसे तो सही बरसे
यूं बूंद बूंद क्यों तरसा रही है
मै बैठा हूं जब शांत तो
क्यों ये मचलाए जा रही है
कोई पूछे कलम क्यों लिख ती है
पागल है कुछ भी लिखती है
दुख सुख बाटे बटते है
ये जिंदगी ऐसे ही चलती है

©Amit Alfaz #Poetry 
#kalam 
#shayarsaab 
#amitalfaz
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पुराने निसां मिटे नहीं
और नई चोट लग रही हैं
घर की आग बुझी नहीं
दिल को आग लग रही है
कड़कती बिजली का डर नहीं
सोई ज़िन्दगी डरा रही हैं
बाहर से ज्यादा दिल के अंदर
धड़कन शोर मचा रही है
मौत मुझे मंजूर है साहेब
ये हृदयघात डरा रहे है
सब अपनी में मशरूफ है
मुझे अपनी ही डरा रही है
ये बारिश बरसे तो सही बरसे
यूं बूंद बूंद क्यों तरसा रही है
मै बैठा हूं जब शांत तो
क्यों ये मचलाए जा रही है
कोई पूछे कलम क्यों लिख ती है
पागल है कुछ भी लिखती है
दुख सुख बाटे बटते है
ये जिंदगी ऐसे ही चलती है

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