पहाड़ों की दरिया भी, हवा निकली, मेरे इरादों से, एक वजह निकली। चाहें कितनी , क्यों न ऊंची हो, हमारे हौसलों के सामने रवा निकली।१। ताउम्र रातों का जागा हूं, अपने आप से लड़ा हूं। यूं ही मंजिल छोटी नहीं दिखती, बेवजह कांटो के राहों पर , सुमन बिछा नहीं करती।२। खुशनुमा दिखता हूं मैं, जमाने को क्या पता? तन्हाई में रोया हूं राफ्ता राफ्ता। लोग मिल जाते हैं अधराहों पर, साथ छोड़,चन्द लम्हों की दोस्ती निकली।३। स्वप्न में डूबे कयी हमराही थे, कोई हवस में था,कयी कहानी थे। जब जिन्दगी ने तौला अपनी कसौटी पर, तब सारी हैकड़ी हवा निकली।४। जिन्दगी यूं नहीं खुद से रूठा करती। हैं किराए पर, आज भी,आबरू लुटा करती। कोई चीख नहीं,पर कुंठित हैं, हमसे मरकर भी,आह नहीं निकली।५। इरादा